


आज जब पूरी दुनिया हिंसा, युद्ध, जलवायु संकट, आर्थिक असमानता और मानवीय संवेदनाओं के क्षरण से जूझ रही है, ऐसे समय में महात्मा गांधी के सिद्धांत पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक दिखाई देते हैं। गांधीजी का जीवन कोई बीता हुआ अध्याय नहीं, बल्कि एक ऐसा प्रकाशस्तंभ है, जो आज के अंधकारमय परिदृश्य में मार्गदर्शन करता है।
सत्य और अहिंसा: शांति का स्थायी विकल्प
दुनिया के कई हिस्सों में युद्ध और आतंक से इंसानियत कराह रही है। ऐसे दौर में गांधीजी का "अहिंसा परमो धर्मः" केवल दार्शनिक विचार नहीं बल्कि शांति और स्थिरता की ठोस रणनीति बन सकता है। संवाद, सहिष्णुता और आपसी सम्मान के आधार पर ही स्थायी शांति स्थापित हो सकती है।
सरलीकरण और स्थिरता: उपभोक्तावाद का समाधान
आज ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु संकट का मूल कारण असीमित उपभोक्तावादी लालसा है। गांधीजी का विचार—“धरती सभी की जरूरतों को पूरा कर सकती है, लेकिन किसी एक के लोभ को नहीं”—आज पर्यावरण संतुलन और सतत विकास के लिए मार्गदर्शक मंत्र है।
आर्थिक समानता और स्वदेशी का भाव
विश्व आर्थिक असमानता की खाई में बंटा है। गांधी का "ट्रस्टीशिप सिद्धांत" हमें बताता है कि धन और संसाधन समाज की अमानत हैं, जिनका उपयोग व्यापक हित में होना चाहिए। साथ ही "स्वदेशी" का भाव आज लोकल अर्थव्यवस्था और आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस आधार दे सकता है।
करुणा और मानवता: विभाजनों से ऊपर उठने का संदेश
जाति, धर्म और रंग की दीवारें आज भी खड़ी हैं। गांधी का "सर्वोदय" दर्शन हमें यह सिखाता है कि असली प्रगति वही है, जिसमें अंतिम व्यक्ति तक सुख-शांति और अवसर पहुँचे।
आज का वैश्विक परिदृश्य गांधीवादी मूल्यों की आवश्यकता को पहले से अधिक रेखांकित करता है। यदि दुनिया गांधीजी के सत्य, अहिंसा, सादगी और मानवता को व्यवहार में लाए, तो न केवल वर्तमान संकटों का समाधान संभव है, बल्कि एक नई और संतुलित विश्व-व्यवस्था की भी रचना होगी।